हैदराबाद, संस्कृति द्वारा शुक्रवार को `वस्त्र वेदा-द टेल्स ऑफ अवर वीवर्स’ विषयक परिचर्चा सत्र का आयोजन बंजारा हिल्स स्थित सप्तपर्णी में किया गया। कार्यक्रम में डिजाइनर तथा लेबल सौरव दास के संस्थापक सौरव दास ने कहा कि हथकरघा रूपी धरोहर को संजोने तथा इसका पुनरोद्धार करने में सरकार की प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है। सरकार को हैंडलूम का पेट्रेन बनना चाहिए।

मॉडरेटर डॉ. रेणु स्वरूप के साथ विषय पर चर्चा करते हुए सौरव दास ने कहा कि साड़ी भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में साड़ियों की अपनी अलग-अलग शैलियाँ तथा बुनाई की तकनीक विकसित हुईं। साड़ी के प्रकारों तथा इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि हर राज्य अपनी विशिष्ट साड़ी शैली प्रदर्शित करता है। हैंडलूम से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर बात करते हुए आज हैंडलूम की विशुद्धता के साथ समझौता देखने को मिल रहा है।

हैंडलूम कला की संरक्षक बने सरकार- सौरव दास

सौरव दास ने कहा कि पुराने समय की बात करें, तो उस समय क्राफ्ट ट्रेडिशन तथा गुणवत्ता के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं होता था। उन्होंने कहा कि जहाँ एक समय में राजघराने बुने हुए वस्रों की कला के संरक्षक हुआ करते थे, वहीं आज कला को संरक्षण देने वालों की कमी है। महारानी इंदिरा देवी, महारानी गायत्री देवी सहित अन्य प्रतिष्ठित हस्तियों से जुड़े प्रसंगों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार को हैंडलूम के संरक्षक की भूमिका का निर्वाह करना चाहिए।

सौरव दास ने जीआई टैग पर विचार रखते हुए कहा कि वैश्वीकरण के दौर में कला को नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए। इसे नदी की तरह प्रवाहमान रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को वस्त्रों पर जीएसटी के प्रावधान की ओर भी ध्यान देना चाहिए। विभिन्न प्रश्नों का उत्तर देते हुए सौरव ने कहा कि सरकार को हैंडलूम तथा पावरलूम के बीच न्याय करना चहिए। साथ ही हैंडलूम क्षेत्र के पुनरोद्धार या विकास के लिए संबंधित कलाकारों, डिजानइर्स आदि की राय लेनी चाहिए, ताकि हैंडलूम की पहुँच को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने को सुनियोजित किया जा सके।

अध्यक्ष रमा पटवा ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि संस्कृति की इस वर्ष की कार्यकारिणी की थीम `ज़ुडें अपनी संस्कृति से’ है, जिसका मुख्य उद्देश्य देश की सांस्कृतिक पहचान से जुड़े कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इस वर्ष हमारा प्रयास पुरातन से जुड़ी लोक कलाओं, उत्सवों तथा परंपराओं को फिर से प्रचलन में लाना है। इसी परिप्रेक्ष्य में आज वस्त्र वेदा विषयक परिचर्चा सत्र का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम का उद्देश्य बुनकरों के कला-कौशल और भारतीय हथकरघा की चिरस्थायी सुंदरता का जश्न मनाना है, जो वस्त्रों के हर एक धागे तथा रेशे के साथ एक कहानी को बुनते हैं।

साथ ही हैंडलूम के शिल्प कौशल तथा सांस्कृतिक विरासत को सम्मान व प्रोत्साहन देने के निरंतर प्रयासों पर चर्चा करना है, ताकि आने वाली पीढ़ी को हथकरघा रूपी समृद्ध विरासत से परिचित कराया जा सके।

अवसर पर संस्कृति की सदस्याओं ने विभिन्न प्रकार की साड़ियों में रैंप वॉक किया। कार्यक्रम के आयोजन में संस्कृति की तत्काल पूर्व अध्यक्ष जेनी मोमाया, उपाध्यक्ष अकिता मल्होत्रा, सचिव राखी अग्रवाल, कोषाध्यक्ष बिनीता सेठिया, को-ऑप्टेड सदस्य सोनल दोशी, परामर्शदाता नम्रता बोलाकी, वंदना शेते सहित अन्य ने योगदान दिया। मंचीय संचालन रितु गुप्ता ने किया।

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